एक कहानी

 विधा- चौपाई

       

आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊॅं,

कहकर गीतों में ढल जाऊॅं। 

प्यारी-प्यारी एक कहानी, 

जिसमें थे इक राजा रानी।।


भले काज राजा था करता,

सदा ध्यान जनता का रखता। 

न्यायशीलता उसको भाती,

नहीं रोक कोई बाधा पाती।।


मौसम बदला जाड़ा आया।

थर-थर काॅंपे पाला लाया।।

इक दिन रानी गई नहाने।

नदी तीर मन को  बहलाने।।


लगी ठंड वह थर-थर कॉंपी,

मिले तपन कटु ऋतु को भाॅंपी।

बोली दासी आग जलाओ,

लगी ठंड है दूर भगाओ।।


रखकर मुख पर घोर उदासी,

नहीं काठ हैं बोली दासी। 

कैसे अब मैं आग जलाऊँ,

इस विपदा को दूर भगाऊँ।।


रानी बोली नज़र उठाओ,

खड़ी झोपड़ी उसे जलाओ।

ताप मिले तो जीवन पाऊॅं,

इस विपदा से जान बचाऊॅं।


सुनकर आज्ञा दासी आई,

झटपट उसने आग जलाई। 

जली झोपड़ी रानी तापी।

हुई दूर मन आपाधापी।।


अग्र दिवस आए फरियादी।

लगे सुनाने निज बर्बादी।

सुनकर क्रोधित राजा होता,

हुआ गलत निज आपा खोता।


पाप किया है सजा भुगतना,

एक बरस तक राह भटकना।

बनकर भिक्षुक टका कमाओ,

दीन झोपड़ी आप बनाओ।।


दण्ड मिला रानी पछताती,

भिक्षा माॅंगे कुटी बनाती।

कैसी लगी कहानी बोलो,

अपनी मति के तो पट खोलो।।


काम करे जो विधि मत राजा,

बाजे उसका जग में  बाजा।

जिसकी पॉंव न फटे बिवाई,

सो क्या जाने पीर पराई।।


रचयिता
राजवीर सिंह 'तरंग',
प्रधानाध्यापक, 
संविलियन विद्यालय सिलहरी,
विकास क्षेत्र-सिलहरी, 
जनपद-बदायूँ।





Comments

Total Pageviews