भूख

कोई खाना व्यर्थ में फेंके,

कोई भूख से जान गँवाए।

कोई भूख से हुआ कुपोषित,

कोई छप्पन भोग लगाए।


कभी बाढ़, सूखा के कारण,

अन्नदाता आँसू बहाए।

जब मिले न चैन सुकून उसे,

फिर कैसे वो फसल उगाए?


जनसंख्या वृद्धि करके हम,

क्यों समस्याएँ और बढ़ाएँ?

रहने को जब भूमि नहीं,

तो अन्न कहाँ पे उगाएँ?


व्यापारी लालच वश में,

अपने-अपने भंडार भरें।

महँगाई सिर चढ़ कर बोले,

गरीब कैसे अपना पेट भरें?


सबको मिले भोजन भरपूर,

आओ करें कुछ ऐसा जतन।

भूख से कोई तड़पे ना अब,

सबका जीवन हो मस्त मगन।


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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